बचपन के किससे पार्ट 1

तो आपका फिर से स्वागत है दोस्तो मेरे इस डायरी ब्लॉग है

आज मेरे पास आपको बताने के लिए मेरे बचपन का एक किस्सा है ,पर उससे पहले आज मेरे पास आपको बताने के लिए एक महत्वपूर्ण सुचना है की बहुत जल्द मेरा यूट्यूब पे चैनल आने वाला है तो आप उसे अपने तहे दिल से पसंद करे और उसे सभी लोगो तक पहुँचाय और हाँ उसे लाइक शेयर और सब्सक्राइब करना न भूलें धन्यवाद !!



तो ये बात कुछ बहुत साल पीछे की है जब मैं पांच साल का बच्चा था। उन दिनों मैं एक ज़िद्दी और खाने का भूका बच्चा था और मुझसे ज्यादा किसी में इतनी अकड़ नहीं थी। तो बात कुछ ऐसी थी की कात्यायनी मंदिर में  जहान मेरे पिताश्री काम करते हैं वहाँ मंदिर के बाबा का जन्मदिन था और मेरे घर से सभी लोग आए थे बहुत बढ़िया अवसर रहा और हम सब ने बहुत मज़े किये ख़ासकर मेरे भाई बहन और मैंने। वो सब लोग दूर रहते हैं इसलिय गरमियों की छुटियों में ही उनसे मिलना होता था इसलिए मैं बहुत ज़्यादा मजे नहीं कर पता था इसीलिए मैंने बहुत मजे किये इस समय बाद में जब हम सब बाहर आते हैं तो हमारे हाथ में प्रसाद रहता है और यहीं वो हादसा होता है। 



हुआ यूँ की मैं अपना पेड़ा खाने ही जा रहा था की एक लंगूर बंदर ने मेरे हाथ से वो पेड़ा छीन लिया और जाके पास ही में सिद्दी पर जाके बैठ गया। अब मैं था तब ज़िद्दी मै भागा उसके पीछे और उसके सामने जाके खड़ा हो गया और उसे लेने की कोशिश करने लगा पर उसने मेरे सामने वो खा लिया और भाई मेरा गुस्सा सात्वे आसमान पे पहुँच गया और मैंने उसमे जोर से एक तमाचा जड़ दिया और वो खी खी करने लगा फिर उसने मुझे एक जोर का तमाचा जड़ दिया बदले में और भाग गया। मैं रोता रोता नीचे आया और मेरे ताउजी ने मुझे अपना पेड़ा खाने को दे दिया और मेरे भाई बेहेन की हसी नहीं रुक रही। 

मैं जब घर पहुंचा तो आने के बाद मैंने आईने में देखा की मेरे गाल पर उस बंदर के हाथ का छाप पड़ गया है और मैं उसे देखने के बाद फिर से रोने लगा। तो ये था मेरे बचपन का वो किस्सा जो मुझे  आज भी याद हैं और जब भी मैं इसके बारे में सोचता हूँ तो मेरी हसी  है। तो दोस्तों  आपका धन्यवाद मेरे इस ब्लॉग को देखने के लिए। 

धन्यवाद


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